Friday, December 27, 2013

मुक्तक : 426 - तेरी पसंदगी


तेरी पसंदगी को सोचकर के कब कहे ?
दिल के ख़याल फ़ौरन औ’’ ज्यों के त्यों सब कहे ।।
ख़ुद के सुकून ख़ुद की तसल्ली की गरज से ,
जितने भी अपनी ग़ज़लों में मैंने क़तब कहे ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...