Wednesday, December 25, 2013

मुक्तक : 422 - आँखें बारिश न बनें


आँखें बारिश न बनें क्यों ये मरुस्थल होएँ ?
जब मशीन हम नहीं तो दर्द में  क्यों रोएँ ?
जब कसक उठती है होती है घुटन सीने में ,
क्यों न अपनों से कहें ग़म अकेले चुप ढोएँ ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...