Tuesday, December 24, 2013

सिर्फ़ इक बार अपनी..............


सिर्फ़ इक बार अपनी 
शक्ल वो दिखा जाता ॥  

तरसती - ढूंढती 
आँखों को चैन आ जाता ॥   
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

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