Thursday, April 3, 2014

128 : ग़ज़ल - दिलचस्प नहीं दर्द भरी


दिलचस्प नहीं दर्द भरी साफ़बयानी  ।।
मैं आज जहाँ हूँ वाँ पहुँचने की कहानी ।।1।।
सूरत की कमी से न पढ़ा उसने मेरा दिल ,
हाँ रूह से इज्ज़त दी क़त्ई इश्क़ न जानी ।।2।।
चढ़ते को सलाम और लुढ़कते को अँगूठा ,
सदियों से भी , आदत है ये , लोगों की पुरानी ।।3।।
कुछ कर कि गुज़र कर न कभी आएँ दोबारा ,
जीवन में चढ़ा जोम , न जोबन , न जवानी ।।4।।
कर करके कई खड्ड भी प्यासे ही रहोगे ,
खोदोगे कुआँ एक ठो पा जाओगे पानी ।।5।।
हर हाल में होती है बुरी पीने की आदत ,
जब तक न फुँँका था ये जिगर बात न मानी ।।6।।
वो एक के बाद एक मुझे देते रहे ग़म ,
मैं लेता रहा जान मोहब्बत की निशानी ।।7।।
चाहा ही उसे जिसका न होना था मेरा तै,
समझा न कभी इश्क़ था या हेचमदानी ।।8।।
( हेचमदानी = मूर्खता , अज्ञान )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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