Thursday, April 17, 2014

132 : ग़ज़ल - तंग बैठा था मैं


तंग बैठा था मैं ख़ल्वत के क़ैदख़ाने से ।।
आ गई तू कि ये जाँ बच गई रे जाने से ।।1।।
यूँ तो पहले भी थींं गुलशन में ये बहारें पर ,
ख़ार भी फूल हुए तेरे खिलखिलाने से ।।2।।
भूल जाने के जतन छोड़ना पड़े आख़िर ,
याद आती है बहुत और तू भुलाने से ।।3।।
मैं तड़पता था बिछड़ तुझसे ख़ूब रोता था ,
अब ख़ुशी से ही मरा जाऊँँ तेरे आने से ।।4।।
एक सूरज की ज़रूरत है दोस्तों मुझको ,
फ़ायदा , चाँद के ढेरों का , क्या लगाने से ?5।।
-डॉ.हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! मयंक जी !

Vaanbhatt said...

सटीक अभिव्यक्ति...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! राजिव कुमार झा जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Vannbhatt जी !

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