Monday, April 7, 2014

मुक्तक : 517 - सब दिल के भोले मुझको


सब दिल के भोले मुझको बदमाश नज़र आयें ?
तर्रार चुप मुज़र्रद अय्याश नज़र आयें ?
लगते कभी मुझे क्यों मुर्दे तमाम सोये ?
क्यों सोये लोग मुझको कभी लाश नज़र आयें ?
( मुज़र्रद = ब्रह्मचारी )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...