Sunday, April 6, 2014

मुक्तक : 516 - स्याह राहों में चमकते


स्याह राहों में चमकते रहनुमा महताब सी ।।
तपते रेगिस्ताँँ में प्यासों को थी शर्बत , आब सी ।।
उसका दिल लोगों ने जब फ़ुटबॉल समझा , हो गयी ,
उसकी गुड़-शक्कर ज़बाँँ भी ज़ह्र सी , तेज़ाब सी ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...