Tuesday, April 8, 2014

मुक्तक : 518 - दिखने में साफ़-सुथरे


दिखने में साफ़-सुथरे बीने-छने हुए थे II
लगते थे दूर से वो इक-इक चुने हुए थे II
ख़ुश थे कि दोस्त बनियों ने दाम कम लगाए ,
घर आके पाया सारे गेहूँ घुने हुए थे II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...