Friday, October 18, 2019

मादक , मसृण , मृदुल , महमहा


मादक , मसृण , मृदुल , महमहा ।।
तव यौवन झूमें है लहलहा ।। 
जैसी कल थी तू आकर्षक ।
उससे और अधिक अब हर्षक ।
तू सुंदर , अप्सरा , परी तू ।
उर्वशी , रंभा से भी खरी तू ।
मैं तेरे सम्मुख सच बंदर ।
किंतु मुझे तक उछल उछलकर ,
हाय लगा मत आज कहकहा ।।
मादक , मसृण , मृदुल , महमहा ।।
तव यौवन झूमें है लहलहा ।। 
मैं भी गबरू था बाँका था ,
तब तेरा मेरा टाँका था ,
रोजी-रोटी की तलाश में ,
मैं बदला जिंदा सी लाश में ,
अब तू इक राजा की रानी ,
तू मदिरा सम मैं बस पानी ,
बरसों बाद मिली है चुप कर ,
देख मुझे मत आज चहचहा ।।
मादक , मसृण , मृदुल , महमहा ।।
तव यौवन झूमें है लहलहा ।। 
- डॉ. हीरालाल प्रजापति

5 comments:

Rohitas Ghorela said...

डॉक्टर साहब आपको पहली बार पढ़ा आज।
आनन्द आ गया।
काफी दिनों बाद ब्लॉग पर कुछ अच्छा पढ़ने को मिला।
बहुत उम्दा रचना है आपकी।

हम भी थोड़ा बहुत लिख लेते हैं आप भी मेरे ब्लॉग तक आएं और आपकी आलोचनात्मक प्रतिक्रिया से रूबरू करवाएं 👉👉  लोग बोले है बुरा लगता है

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । रोहिताश जी । अवश्य और शीघ्र ही आपके ब्लॉग पर आता हूँ ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । अनिता सैनी जी ।

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । सुशील कुमार जोशी जी ।

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