Sunday, October 13, 2019

मुक्तक : 926 - आँधी


आज फिर याद की ऐसी आँधी चली ।।
बुझ चुकी थी जो दिल में वो आतिश जली ।।
मुद्दतों बाद फिर तुम जो आए नज़र ,
इश्क़ ने मुझ में फिर दी मचा खलबली ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-10-2019) को     "सूखे कलम-दवात"  (चर्चा अंक- 3489)   पर भी होगी। 
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । कविता रावत जी ।

मन की वीणा said...

बहुत सुंदर सृजन।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । मन की वीणा ।

Rohitas Ghorela said...

कुछ यादों को हम अचेतन मन तक ले जा नहीं सकते।
खलबली है खलबली।
पधारें 👉👉  लोग बोले है बुरा लगता है

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...