Monday, September 9, 2019

मुक्तक : 918 - गुलगुला


तीखा मौसम मालपुआ , गुलगुला हुआ है ।।
धरती गीली श्याम गगन अब धुला हुआ है ।।
हम इसके आनन्द में रम भूल ये गए कब ,
बरखा बंद हुई पर छाता खुला हुआ है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...