Thursday, September 19, 2019

मुक्तक : 921 - गिर पड़ा हूँ


हैरान हो रहे हो , मैं कल सा फिर पड़ा हूँ ?
हँसते ही हँंसते कैसे , अश्क़ों से घिर पड़ा हूँ ?
मैं आज भी नशे में हूँ पर नहीं नशे से ,
ठोकर किसी के धोख़े की खा के गिर पड़ा हूँ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

4 comments:

Unknown said...

Ati Sundar

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ।

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-09-2019) को "पाक आज कुख्यात" (चर्चा अंक- 3466) पर भी होगी।


चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । अनिता सैनी जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...