Thursday, September 12, 2019

महामुक्तक : 919 - परिवर्तन


जो दिया करते थे सौग़ातों पे सौग़ातें ,
आज वो ही लूटने हमको मचलते हैं ।।
जो हमारे सिर का सारा बोझ ढोते थे ,
अब वही पैरों तले हमको कुचलते हैं ।।
जो लगे रहते थे सचमुच इक ज़माने में ,
हाँ ! मिटाकर ख़ुद को हमको बस बनाने में ,
करके वो नुक़्साँ हमारा , ढेर दे तक़्लीफ़ ,
भर ख़ुशी से आज बंदर सा उछलते हैं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

2 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-09-2019) को " हिन्दीदिवस " (चर्चा अंक- 3458) पर भी होगी।

--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । अनिता सैनी जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...