Tuesday, August 6, 2019

मुक्तक : 910 - बारिश


उनसे मिलकर हमको करना था बहुत कुछ रात भर ।। 
कर सके लेकिन बहुत कुछ करने की हम बात भर ।।
नाम पर बारिश के बदली बस टपक कर रह गयी ,
हमने भी कर उल्टा छाता उसमें ली बरसात भर ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

1 comment:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । शास्त्री जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...