Wednesday, August 7, 2019

मुक्तक : 911 - हुजूर


सोचा नहीं था मुझसे मेरा हुजूर होगा ।।
जितना क़रीब था वो उतना ही दूर होगा ।।
मैं मानता कहाँ हूँ दस्तूर इस जहाँ का  ,
आया है जो भी उसको जाना ज़रूर होगा ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

2 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8.8.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3421 में दिया जाएगा

धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । दिलबाग सिंह विर्क जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...