पागल नहीं तो क्या हैं अपने दुश्मनों को भी ,
जो मानते हैं तह-ए-दिल से ख़ैरख़्वाह हम ?
करते हैं अपने बेवफ़ाओं को भी रात-दिन ,
सच्ची मोहब्बतें औ' वह भी बेपनाह हम ।।
किस डर से हम न जानें ये अमीर लोग-बाग ,
कहते हैं अपने आपको फ़क़ीर दोस्तों ;
बेदख़्ल होके भी ज़मीन-जाएदाद से ,
क्यों अब भी ख़ुद को मानते हैं बादशाह हम ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
1 comment:
धन्यवाद ! अनिता जी ।
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