Thursday, July 25, 2013

मुक्तक : 285 - जो गड्ढा है




जो गड्ढा है वो कुछ करले , समंदर बन नहीं सकता ।।
सिपाही चार बित्ते का , सिकंदर बन नहीं सकता ।।
उड़े कितनी भी ऊँची बाज से तितली न जीतेगी ,
बहुत उछले मगर मेंढक , तो बंदर बन नहीं सकता ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

6 comments:

राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' said...

बेहतरीन मुक्तक डॉ. प्रजापति जी

Unknown said...

bahut achcha likhte hai aap

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! राजेन्द्र सिंह कुँवर ''फरियादी '' जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत धन्यवाद ! Rajul Mehrotra जी !

Harish Kumar Satija said...

Nice expression of exc. Words.

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Harish Kumar Satija जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...