Monday, July 1, 2013

मुक्तक : 259 - कोई पढ़ता नहीं


कोई पढ़ता नहीं है यूँ ही लिखे जाता हूँ ॥
कोई देखे न फिर भी ख़ूब सजे जाता हूँ ॥
काम कितने ही मेरी लत हैं मेरी आदत हैं ,
जैसे जीने के लिए रोज़ मरे जाता हूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...