रेग भी प्यासे को जैसे आब सा आता नज़र ॥
एक क़त्रा भी बड़े तालाब सा आता नज़र ॥
यूँ ही मेरी आँखों को सच इन दिनों में रातों को ,
जुगनूँ चौदहवीं का इक महताब सा आता नज़र ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
2 comments:
सुन्दर प्रस्तुति ....!!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (24-07-2013) को में” “चर्चा मंच-अंकः1316” (गौशाला में लीद) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद ! आभार ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !
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