Tuesday, July 23, 2013

मुक्तक : 280 - रेग भी प्यासे को


रेग भी प्यासे को जैसे आब सा आता नज़र ॥
एक क़त्रा भी बड़े तालाब सा आता नज़र ॥
यूँ ही मेरी आँखों को सच इन दिनों में रातों को ,
जुगनूँ चौदहवीं का इक महताब सा आता नज़र ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर प्रस्तुति ....!!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (24-07-2013) को में” “चर्चा मंच-अंकः1316” (गौशाला में लीद) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! आभार ! रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...