Thursday, July 4, 2013

मुक्तक : 264 - तेरे ख़र्च उठाने


तेरे ख़र्च उठाने हर दिन बिकता रहा हूँ मैं ॥
तुझको बनाने तू क्या जाने मिटता रहा हूँ मैं ॥
तुझको काले काले की आवाज़ न दे दुनिया ,
तुझको सूरज सा चमकाने घिसता रहा हूँ मैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...