Monday, July 29, 2013

मुक्तक : 291 - न तिनका है न


न तिनका है न कश्ती है न इक पतवार अपना है ॥
चलो अब डूब जाने में ही बेड़ा पार अपना है ॥
यूँ लाखों से है पहचान औ हज़ारों से मुलाक़ातें ,
मगर क्या फ़ाइदा इक भी न सच्चा यार अपना है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...