Thursday, July 4, 2013

मुक्तक : 263 - न हरिश्चंद्र न सुकरात



ना हरिश्चंद्र न सुकरात मुझे बनना है ॥
आत्मघाती न हो उतना ही सच उगलना है ॥
फूट जाये न कहीं सर ये छत से टकराकर ,
बंद कमरों में एहतियात से उछलना है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...