Monday, July 1, 2013

मुक्तक : 260 - चाय भी नाश्ता भी


चाय भी नाश्ता भी साथ-साथ खाना भी ॥
उसको बख़्शीश भी भरपूर मेहनताना भी ॥
उससे बेहतर हूँ मगर वाहवाही उसको मिले ,
मुझको सूखी पगार डाँँट-डपट-ताना भी ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...