Monday, February 4, 2013

29. ग़ज़ल : पानी में रह के बैर




पानी में रह के बैर मगरमच्छ से लिया ॥
जीना था कई साल मगर सिर्फ़ कुछ जिया ॥
दुनिया में सबकी बात अदब से सुनी मगर,
जो दिल को ठीक-ठाक लगा बस वही किया ॥
आँखोंं को मूँद जब भी किया है यक़ीन सच ,
जिसपे किया उसी ने बराबर दग़ा दिया ॥
नाकामयाब कितने रफ़ूगर यहाँ हुए ,
चिथड़ों को मेरे उनके सिए ना गया सिया ॥ 
टिंडे का काम हमने चलाया तरोई से ,
गर नीम मिल सकी न करेला चबा लिया ॥ 
गंदा है फिर भी पानी है पीले यूँ थार में,
प्यासों ने वक़्त-वक़्त पे पेशाब तक पिया ॥ 

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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