Wednesday, February 13, 2013

मुक्तक : 49 - साकार सबके होने की


साकार सबके होने की संभावनाएँ थीं ॥ 
मस्तिष्क में जितनी भी मेरे कल्पनाएँ थीं ॥ 
लक्ष्योन्मुख था मेरा हर इक डग नपा तुला ,
ईश्वर के मन में किन्तु अन्य योजनाएँ थीं ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...