नुमूदार क़मर कर दूँ मैं ॥
ख़ुर्द इस गाँव को
इक सद्र-शहर कर दूँ मैं ॥
इक सद्र-शहर कर दूँ मैं ॥
कुछ तो काम आऊँ
कि इस वास्ते बेकार अपनी ,
कि इस वास्ते बेकार अपनी ,
ये नामुराद
बाक़ी ज़िंदगी बसर कर दूँ ॥
बाक़ी ज़िंदगी बसर कर दूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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