Sunday, February 10, 2013

मुक्तक : 31 - पूरे ग़ायब से


पूरे ग़ायब से 
नुमूदार क़मर कर दूँ मैं ॥
ख़ुर्द इस गाँव को 
इक सद्र-शहर कर दूँ मैं ॥
कुछ तो काम आऊँ 
कि इस वास्ते बेकार अपनी ,
ये नामुराद 
बाक़ी ज़िंदगी बसर कर दूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...