Tuesday, February 26, 2013

मुक्तक : 77 - फ़क़ीरी में जो ख़ुश


फ़क़ीरी में जो ख़ुश मत उसको धन-दौलत अता करना ॥
मोहब्बत के तलबगारों को मत नफ़्रत करना ॥
ख़ुदा क्या किसको लाज़िम है बख़ूबी जानता है तू ,
लिहाज़ा माँगने की मत मुझे नौबत अता करना ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

mukeshjoshi said...

बहोत अच्छे हे आपके लिखे मुक्तक व ग़ज़ल हीरालाल जी पढ़ रहा हूँ ओर गौरान्वित हो रहा हूँ,
कम शब्दों में जो आप केहते हे एक अलग बात हे आपकी लेखनी में,,,,,,,

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद mukeshjoshi जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...