कितना -कितना गिरा पड़ा
इक ज़रा -ज़रा सा उठने को ॥
इक ज़रा -ज़रा सा उठने को ॥
बनने के इस फेर में तत्पर
रहा सदा मैं मिटने को ॥
रहा सदा मैं मिटने को ॥
निःसन्देह सफलताओं का भी
आलिंगन ख़ूब किया ,
आलिंगन ख़ूब किया ,
किन्तु अभी तक मिला न मुझको
सुख से तनिक लिपटने को ॥
सुख से तनिक लिपटने को ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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