हर इक सिम्त ज़ुल्मो सितम
हो रहा है ॥
जिसे देखो गरमा गरम हो
रहा है ॥
ख़ुदा मानकर पूजता हूँ
जिसे मैं ,
वो पत्थर न मुझ पर नरम
हो रहा है ॥
शगल जिसका कल तक था मुझको
हँसाना ,
अब उसके ही हाथों सितम
हो रहा है ॥
बहुत ख़ुश था शादी के पहले
जो मुझसे ,
वो नाराज़ हरदम सनम हो
रहा है ॥
कमाते थे बाहर तरसते थे
घर को ,
निठल्ले हैं घर पर तो
ग़म हो रहा है ॥
जो है आजकल मुझसे बर्ताव
उसका ,
वो अब भी है मेरा वहम
हो रहा है ॥
यकीं था कि वो नाम रोशन
करेगा ,
वो छूई-मुई बेशरम
हो रहा है ॥
मेरी ज़िंदगी में असर उसका
पूछो ,
था पहले बियर अब वो रम
हो रहा है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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