Tuesday, February 26, 2013

मुक्तक : 78 - कुछ को ऊँची


कुछ को ऊँची सी अटारी पे खड़ा लगता हूँ ।।
कुछ को इस शह्र के गटर में पड़ा लगता हूँ ।।
कुछ सघन सब्ज़-ओ-सायादार मुझे कहते हैं ,
कुछ को सूखाविरल व पत्रझड़ा लगता हूँ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

5 comments:

अजय कुमार झा said...

वाह वाह , बहुत ही खूबसूरत , पूरी जिंदगी का फ़लसफ़ा कह डाला आपने तो अपने इस कतरे में :) सुदर ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! अजय कुमार झा साहब !

Unknown said...

Very Nice Sir...............Jivan Esi Ka Nam Hai.........

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! SATYA NARAYAN जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...