Wednesday, February 13, 2013

मुक्तक : 48 - हम किसी की न


हम किसी की न निगाहों में कभी जम पाए ॥ 
हम किसी दिल में न दो दिन से ज्यादा थम पाए ॥ 
हर जगह अपनी ग़रीबी अड़ी रही आगे , 
कोई फ़र्माइशे महबूब उठा न हम पाए ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...