Sunday, February 17, 2013

46 : ग़ज़ल - जो आ ही जाए लबों पर




जो आ ही जाये लबों पर तो मुस्कुरा लेना ॥ 
कि सुनके तेरा फ़साना किसी को क्या लेना ॥ 
न इल्तिजा तू कर उसकी न जिसके हो क़ाबिल ,
मिले भी तो न ज़रूरत से कुछ सिवा लेना ॥ 
बुरा है यूँ भी किसी से उधारियाँ करना ,
मगर हाँ ! दोस्त से हरगिज़ भी क़र्ज़ ना लेना ॥ 
मिले न मुफ़्त में दुनिया  की कोई शै लेकिन ,
मिले कहीं न अगर प्यार तो चुरा लेना ॥ 
पड़े मिलें जो ख़ज़ाने तू चल दे ठुकराकर ,
गिरा मिले जो कहीं आदमी उठा लेना ॥ 
जो प्यार करता है तुझको किसी ग़रज़ के बिन ,
तू जान दे के भी मत उसकी बददुआ लेना ॥  
 करना चाहे किसी को तू उम्र भर सिज्दा ,
शहीदे मुल्क़ की तुर्बत पे सर झुका लेना ॥ 
बुरा कोई भी करे काम तो ये करना ही ,
लगाना दर न भले पर्दा तो गिरा लेना ॥
( सिवा=से अधिक , तुर्बत=क़ब्र )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

11 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! yashoda agrawal जी !

ANULATA RAJ NAIR said...

अच्छी रचना....

अनु

Dinesh pareek said...

वहा वहा क्या बात है


मेरी नई रचना

प्रेमविरह

एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

Pratibha Verma said...

बहुत खूब....

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद !Pratibha Verma जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद !dineshpareek जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! (expression) अनु जी !

Unknown said...

bahut sunder

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! gope mishra जी !

shishirkumar said...

Bahut dilkash hai Dr sahub Aapki yah gazal.



Shishirkumar.

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! shishirkumar जी !

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