जो आ ही जाये लबों पर तो मुस्कुरा लेना ॥
कि
सुनके तेरा फ़साना किसी को क्या लेना ॥
न इल्तिजा तू कर उसकी न जिसके हो क़ाबिल ,
मिले
भी तो न ज़रूरत से कुछ सिवा लेना ॥
बुरा
है यूँ भी किसी से उधारियाँ करना ,
मगर हाँ ! दोस्त से हरगिज़ भी क़र्ज़ ना लेना ॥
मिले
न मुफ़्त में दुनिया की कोई शै लेकिन ,
मिले कहीं न अगर प्यार तो चुरा लेना ॥
पड़े मिलें जो ख़ज़ाने तू चल दे ठुकराकर ,
गिरा मिले जो कहीं आदमी उठा लेना ॥
जो प्यार करता है तुझको किसी ग़रज़ के बिन ,
तू जान दे के भी मत उसकी बददुआ लेना ॥
न करना चाहे किसी को तू उम्र भर सिज्दा ,
शहीदे मुल्क़ की तुर्बत पे सर झुका लेना ॥
बुरा
कोई भी करे काम तो ये करना ही ,
लगाना दर न भले पर्दा तो गिरा लेना ॥
( सिवा=से अधिक , तुर्बत=क़ब्र )
( सिवा=से अधिक , तुर्बत=क़ब्र )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
11 comments:
धन्यवाद ! yashoda agrawal जी !
अच्छी रचना....
अनु
वहा वहा क्या बात है
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
बहुत खूब....
धन्यवाद !Pratibha Verma जी !
धन्यवाद !dineshpareek जी !
धन्यवाद ! (expression) अनु जी !
bahut sunder
बहुत बहुत धन्यवाद ! gope mishra जी !
Bahut dilkash hai Dr sahub Aapki yah gazal.
Shishirkumar.
धन्यवाद ! shishirkumar जी !
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