Tuesday, February 26, 2013

56 : ग़ज़ल - मुझको जीने की



मुझको जीने की मत दुआ दो तुम ॥
हो सके दर्द की दवा दो तुम ॥
क्यों हुआ ज़ुर्म मुझसे मत सोचो ,
जो मुक़र्रर है वो सज़ा दो तुम ॥
मुझको हमदर्द मानते हो तो ,
अपने सर की हर इक बला दो तुम ॥
मैं तो तुमको बुला-बुला हारा ,
कम से कम अब तो इक सदा दो तुम ॥
यूँ न फूँको कि बस धुआँ निकले ,
ख़ाक कर दो या फिर बुझा दो तुम ॥
रखना क़ुर्बाँ वतन पे धन दौलत ,
गर ज़रूरत हो सर कटा दो तुम ॥
वो जो इंसाँँ बनाते हैं उनको ,
कुछ तो इंसानियत सिखा दो तुम ॥
फँस गया हूँ मैं जानते हो गर ,
बच निकलने की रह बता दो तुम ॥
 -डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

Dr Rakesh Srivastava Experiences said...

Ye rachna umda hone ke saath - saath aapka blog utna aakarshak hai , jitna ki saaj - sajja se hona chaahiye . Aap yadi saNyam se seemit kintu yojna baddh lekhan kareN to aap adhik jaane jaayeNge . Aapko shubhkaamnaayeN .

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Dr.Rakesh Srivastava जी !

shishirkumar said...

Dr sahab Aapki Gazal padhkar Mir Taki Mir ke Gazalon ki yad aati hai

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! shishirkumar जी !

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