Wednesday, February 20, 2013

मुक्तक : 63 - जैसे सबसे छुपा



जैसे सबसे छुपा छुपा शराब रखते हैं ॥ 

दर्दो ग़म दिल में हम यों बेहिसाब रखते हैं ॥ 

क्योंकि रोने का हो नतीजा सिफ़र हम हँसती ,

दोनों आँखों में समंदर को दाब रखते हैं ॥ 

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Pratibha Verma said...

सुन्दर प्रस्तुति ...

उमेश चन्द्र सिरसवारी said...

mat kaho dard kahan nahi hai.....mat sunao nagma vafa ka dil sunna nahi chahta hai...........sunder

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...