Wednesday, February 6, 2013

33. ग़ज़ल : याँ पर आगी धू-धू जलती



याँ पर आगी धू-धू जलती , जाकर दमकल ले आओ ।।
कुछ मत पूछो पानी-वानी तुम तो बोतल ले आओ ।।1।।
उजले-उजले सूरज-चंदा आँखों में मेरी चुभते ,
अँधियारी काली रातों के , तारे झलमल ले आओ ।।2।।
ऊनी , सूती , रेशम , खादी , के मत मुझको दो गट्ठर ,
बस चाहे इक ही टुकड़ा , ढाका कि मलमल ले आओ ।।3।।
नीले-नीले नभ के सूरज , चंदा , तारे सब ढँक दो ,
सूखा रो-रो चीखे काले-काले बदल ले आओ ।।4।।
इस उपवन का सन्नाटा , सबसे बोले कोई इसमें ,
चिड़िया ,तोता ,मैना , बुलबुल , कोयल , गलगल ले आओ ।।5।।
पोखर के ठहरे पानी के जैसा जीवन मत रोको ,
निकलो कूपों , तालों से , नदियों सी हलचल ले आओ ।।6।।
बस इक शर्त पे तुमको दिल से , मैं कर दूँगा माफ़ अगर ,
मुझसे छीने थे जो अच्छे , इक या दो पल ले आओ ।।7।।
सब कुछ लूट के ही बीमार का तब ये चारागर बोला ,
जो पहले ही कह देना था 'बस गंगा जल ले आओ' ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

6 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Sunder Gazal

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

आ. डॉ. मोनिका शर्मा जी बहुत बहुत धन्यवाद !

Anonymous said...

Ohho very Niceeeeeee....sir g

shailendra dubey said...

Ohho very Niceeeeeee sir g

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! shailendra dubey जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...