Wednesday, February 20, 2013

50 : ग़ज़ल - आ जाओ आ के मेरा


आ जाओ आके मेरा , हुलिया बिगाड़ दो ना ॥ 
घटिया सी बिलबिलाती , दुनिया उजाड़ दो ना ॥ 
मेरे गुनाहों पर मैं , खुद माँगता सज़ा हूँ ,
फाँसी दो या ज़मीं में , ज़िंदा ही गाड़ दो ना ॥ 
हर बात में तो आगे दुनिया निकल गई है ,
क्यों चल रहे हो पीछे , तुम भी पछाड़ दो ना ॥ 
तुमने ही तो उढ़ाई , है मुझपे चादरे ग़म ,
लो नब्ज़ भी चली अब , अब तो उघाड़ दो ना ॥ 
भेजे हैं ख़त जो तुमको , हर्फ़ हर्फ़ सच लिखा है ,
इक बार पढ़ लो चाहे , फिर चीर-फाड़ दो ना ॥ 
फ़िर से न जोड़ पाऊँ , दिल और मैं कहीं पर ,
कुछ इस तरह से मुझको , तुम तोड़-ताड़ दो ना ॥ 
आदी हैं हम तो कूड़े-कचरे में ही बसर के ,
तुमको बुरा लगे तुम , ही पोंछ-झाड़ दो ना ॥ 
लग जाएँगे बुरे भी , हम खुल के  काम करने ,
आती है शर्म पहले , दिन कुछ तो आड़ दो ना ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

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