Friday, February 1, 2013

मुक्तक : 16 -मेरे भी अँधेरों को


मेरे भी अँधेरों को इक आफ़्ताब देना ।।
इक ,ज़िंदगी बदल दे ,ऐसी किताब देना ।।
हरगिज़ तलब न शरबत-ओ-शराब की है मुझको ,
मेरी तिश्नगी की ख़ातिर मक्के का आब देना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...