शाह लगते फ़क़ीर होते है ।।
कुछ ही दिल से
अमीर होते हैं ।।
अपने साधे से कब निशानेंं लगें ,
उनके तुक्के भी
तीर होते हैं ।।
लाखों कवि हैं जहाँ में पर कितने ,
सूर , तुलसी , कबीर होते हैं ?
सच ग़ज़लगोई करने वालों में ,
अब न ग़ालिब , न मीर होते हैं ।।
जिस्म से अनगिनत हैं ताक़तवर ,
सच में गिनती के
वीर होते हैं ।।
पीर हर क़िस्म की मिटा दें जो ,
बस वही सच के पीर होते हैं ।।
जान जाए मगर न पाप करें ,
जिनके रोशन ज़मीर होते हैं ।।
पीर हर क़िस्म की मिटा दें जो ,
बस वही सच के पीर होते हैं ।।
जान जाए मगर न पाप करें ,
जिनके रोशन ज़मीर होते हैं ।।
असली शतरंज में कहाँ प्यादे ,
दर हक़ीक़त वज़ीर
होते हैं ?
-डॉ.
हीरालाल प्रजापति
2 comments:
aaahaa....very niccccc
धन्यवाद ! sk dubey जी !
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