Friday, February 1, 2013

24. ग़ज़ल : शाह लगते फ़क़ीर......


शाह लगते फ़क़ीर होते  है ।।
कुछ ही दिल से अमीर होते हैं ।।
 अपने साधे से कब निशानेंं लगें ,
उनके तुक्के भी तीर होते हैं ।।
 लाखों कवि हैं जहाँ में पर कितने ,
सूर , तुलसी , कबीर होते हैं ?
 सच ग़ज़लगोई करने वालों में ,
अब न ग़ालिब , न मीर  होते हैं ।।
जिस्म से अनगिनत हैं ताक़तवर ,
सच में गिनती के वीर होते हैं ।।
पीर हर क़िस्म की मिटा दें जो ,
बस वही सच के पीर होते हैं ।।
जान जाए मगर न पाप करें ,
जिनके रोशन ज़मीर होते हैं ।।
 असली शतरंज में कहाँ प्यादे ,
दर हक़ीक़त वज़ीर होते हैं  ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...