Saturday, February 16, 2013

45 : ग़ज़ल - पूछ तो क्यों रो रहे हैं ?


पूछ तो क्यों रो रहे हैं ?
कौन सा ग़म ढो रहे हैं ?
रात भर जागे नहीं , क्यों 
दिन चढ़े तक सो रहे हैं ?
क्यों खुशी की बात पर भी 
ग़मज़दा यों हो रहे हैं ?
पत्थरों में किस बिना पर 
बीज आख़िर बो रहे हैं ?
अब नहीं पहचानते 'जो' 
अपने कल तक 'वो' रहे हैं ?
साबका किससे पड़ा है 
अपना आपा खो रहे हैं ?
काम को क्या खेल समझें 
खेल अब काम हो रहे हैं ॥ 
हो रहे हैं आज बढ़कर 
हमसे कमतर जो रहे हैं ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

aaaaaha.........................................................very nicc sir ji....good morning

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! sk dubey जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...