पूछ तो क्यों रो रहे हैं ?
कौन सा ग़म ढो रहे हैं ?
रात भर जागे नहीं , क्यों
दिन चढ़े तक सो रहे हैं ?
क्यों खुशी की बात पर भी
ग़मज़दा यों हो रहे हैं ?
पत्थरों में किस बिना पर
बीज आख़िर बो रहे हैं ?
अब नहीं पहचानते 'जो'
अपने कल तक 'वो' रहे हैं ?
साबका किससे पड़ा है
अपना आपा खो रहे हैं ?
काम को क्या खेल समझें
खेल अब काम हो रहे हैं ॥
हो रहे हैं आज बढ़कर
हमसे कमतर जो रहे हैं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
aaaaaha.........................................................very nicc sir ji....good morning
धन्यवाद ! sk dubey जी !
Post a Comment