Thursday, February 7, 2013

मुक्तक : 25 - किस्सों में ही सुस्त गधे से



क़िस्सों में ही सुस्त गधे से जीत न पाता अरबी घोड़ा ॥
बस गप्पों में ही कछुए से तेज़ कभी खरगोश न दौड़ा ॥
काँच सदा ही टूटा करते हैं पत्थर की चोटों से बस ,
जादूगर ही शीशे से दिखला सकता है फोड़ हथौड़ा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...