सच दुआओं से क्या हुआ करता ?
किसलिए फिर भी तू किया करता ?
ये फफोले दिखा न तू बतला ,
क्यों ये अंगार तू छुआ करता ?
सिर्फ़ इंसाँ ही अपने अच्छे को ,
अच्छे अच्छों का भी बुरा करता ।।
मर्ज़ अगर लाइलाज होता है ,
आदमी और भी दवा करता ।।
उसके हालात तुझसे बदतर हैं ,
फिर भी ख़ुशहाल वो रहा करता ।।
एक जीने से खौफ़ खाता इक ,
मौत के नाम से डरा करता ।।
तीरगी में मशालची जैसा ,
अब तो जुगनूँँ हमें लगा करता है ।।
मेनका - उर्वशी पे तू क्या है ,
इक मुजर्रद तलक मरा करता ।।
( मुजर्रद =ब्रह्मचारी )
( मुजर्रद =ब्रह्मचारी )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
No comments:
Post a Comment