Sunday, February 10, 2013

38. ग़ज़ल : सच दुआओं से क्या


सच दुआओं से क्या हुआ करता ?
किसलिए फिर भी तू किया करता ?
ये फफोले दिखा न तू बतला ,
क्यों ये अंगार तू छुआ करता ?
सिर्फ़ इंसाँ ही अपने अच्छे को ,
अच्छे अच्छों का भी बुरा करता ।। 
मर्ज़ अगर लाइलाज होता है ,
आदमी और भी दवा करता ।।
उसके हालात तुझसे बदतर हैं ,
फिर भी ख़ुशहाल वो रहा करता ।।
एक जीने से खौफ़ खाता इक ,
मौत के नाम से डरा करता ।।
तीरगी में मशालची जैसा ,
अब तो जुगनूँँ हमें लगा करता है ।।
मेनका - उर्वशी पे तू क्या है ,
इक मुजर्रद तलक मरा करता ।।
 ( मुजर्रद =ब्रह्मचारी  )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...