लस्त-पस्तों की कसक को जक मिले II
हम
से जल-भुन कर लपक ठण्डक मिले II
सब ख़ुशामदियों के जैसे सामने ,
पीठ
पीछे सब चहक निंदक मिले II
बदनसीबी
थी हमारी और क्या ,
हंस
की मेहनत के बदले वक मिले II
भीख में या इत्तिफ़ाक़न औ' न ख़ुद ,
लड़-झगड़ कर हमको ये चक हक़ मिले II
दिख
गई भूले अगर इंसानियत ,
मज़्हबी बेशक़ कलक भौचक मिले II
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
No comments:
Post a Comment