Saturday, February 9, 2013

37. ग़ज़ल : लस्त पस्तों की......


लस्त-पस्तों की कसक को जक मिले II  
हम से जल-भुन कर लपक ठण्डक मिले II 
सब ख़ुशामदियों के जैसे सामने ,
पीठ पीछे सब चहक निंदक मिले II  
बदनसीबी थी हमारी और क्या ,
हंस की मेहनत के बदले वक मिले II  
भीख में या इत्तिफ़ाक़न औ' न ख़ुद ,
लड़-झगड़ कर हमको ये चक हक़ मिले II  
दिख गई भूले अगर इंसानियत ,
मज़्हबी बेशक़ कलक भौचक मिले II  
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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