Sunday, February 3, 2013

27. ग़ज़ल : पहले थे नर्मोनर्म गुल



पहले थे नर्मोनर्म गुल अब केक्टस हुए ।।
अंजन नयन के आज पकी मिर्च जस हुए ।।
कल तक वो बीड़ी ,जर्दा से सस्ते सुलभ रहे 
 अब क़ीमती सिगार ,अफ़ीमो-चरस हुए ।।
पहले थे उनके दूध में हम जाफ़रान से, 
आज इक बड़ी क़रीह सी काली मगस हुए ।।
सब कुछ था हममें  सिर्फ़ न थी खूबसूरती ,
हम नींव में गड़े वो चमकते कलस हुए ।।
जब से मिला है उनको किसी नाज़नीं का प्यार 
सूखे थे वो सुपारी से गन्ना सरस हुए ।।
करता हूँ उसको याद मैं अब भी बुरी तरह ,
जिसने मुझे भुला दिया बरसों-बरस हुए ।।
जीते जी उनको जान न पाए पड़ोसी भी ,
मरने के बाद जिनके ज़माने में जस हुए ।।
करने को उनकी धूप को कुछ और चिलचिली ,
पूनम के सब चिराग़ अमा के तमस हुए ।।
चुभवा लीं सुइयाँ हँसके जगह से हिले बग़ैर 
इक गुदगुदी के नाम से झट टस  से मस हुए ।।
   (करीह =घिनौनी ,मगस =मक्खी )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...