Tuesday, February 5, 2013

31. ग़ज़ल : जो पाले नेवले


जो पाले नेवले उसको , न लाके साँप दो भाई ।।
हो जिसके हाथ में पत्थर , उसे मत काँच दो भाई ।।
न ऐसे नाक भौं अपनी , सिकोड़ो आँख मत मींचो,
जो  दिखता हो कोई नंगा , उसे बस ढाँप दो भाई ।।
जिन्हें नज़्ला-ओ-सर्दी है , मुफ़ीद उनको ही ये होगी,
सुलगते हैं जो गर्मी में , उन्हें मत आँच दो भाई ।।
अगर करना हो सदक़ा तो वसीअत में दमे आख़िर ,
किसी को अपने गुर्दे और किसी को आँख दो भाई ।।
जला है दूध से इतना , कि अब तो एहतियातन वो,
न पीता फूँके बिन चाहे , बरफ़ सा छाँछ दो भाई ।।
जो करते हैं ज़बरदस्ती , हैं दहशतगर्द-दंगाई ,
कलम कर उनके सर खम्भों के ऊपर टाँग दो भाई ।।
न शाएहो सका जो वो , मेरा इस आख़िरी दम में,
क़ुरासा मत पढ़ो ; दीवान लाकर बाँच दो भाई ।।
[शाए'=प्रकाशित ;क़ुरासा=पवित्र ग्रन्थ/कुरान ;दीवान=ग़ज़ल संग्रह ] 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 


5 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

मंगलवार 12/02/2013को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं .... !!
आपके सुझावों का स्वागत है .... !!
धन्यवाद .... !!

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद Vibha Rani Shrivastava जी !

Sanjeev Mishra said...

न ऐसे नाक भौं अपनी सिकोड़ो आँख न मींचो,
जो दिखता हो कोई नंगा उसे बस ढाँप दो भाई ।।
जिन्हें नज्ला-ओ-सर्दी है ये उनको ही मुफ़ीद होगी,
जो गर्मी में सुलगते हैं उन्हें मत आँच दो भाई ।।
..........अदभुत.....अतुलनीय....अविस्मर्णीय ....क्या रदीफ़ और काफिया लगाया है आपने.....क्या कहने.....

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! Sanjeev Mishra जी !

Anonymous said...

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I'm trying to figure out if its a problem on my end or if it's the blog.
Any feedback would be greatly appreciated.

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