Wednesday, February 6, 2013

मुक्तक : 22 - नर्म डंठल



नर्म डंठल की जगह सख़्त तना हो जाना ।।
बिखरे-बिखरे से चाहता था घना हो जाना ।।
कोशिशों में तो कसर कुछ न उठा रक्खी थी ,
पर था क़िस्मत में हर इक हाँ का मना हो जाना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...