Monday, February 11, 2013

मुक्तक : 42 - शबनम चाट-चाट के




शबनम चाट-चाट के अपनी प्यास बुझाता हूँ ॥
तेज़ धूप में अपनी रोटी दाल पकाता हूँ ॥
ऊँट के मुंह में जीरे जितनी अल्प कमाई में ,
ज़िंदा रहने की कोशिश में मर-मर जाता हूँ ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...