आ जाओ आके मेरा , हुलिया बिगाड़ दो ना ॥
घटिया सी बिलबिलाती , दुनिया उजाड़ दो ना ॥
मेरे गुनाहों पर मैं , खुद माँगता सज़ा हूँ ,
फाँसी दो या ज़मीं में , ज़िंदा ही गाड़ दो ना ॥
हर बात में तो आगे दुनिया निकल गई है ,
क्यों चल रहे हो पीछे , तुम भी पछाड़ दो ना ॥
तुमने ही तो उढ़ाई , है मुझपे चादरे ग़म ,
लो नब्ज़ भी चली अब , अब तो उघाड़ दो ना ॥
भेजे हैं ख़त जो तुमको , हर्फ़ हर्फ़ सच लिखा है ,
इक बार पढ़ लो चाहे , फिर चीर-फाड़ दो ना ॥
फ़िर से न जोड़ पाऊँ , दिल और मैं कहीं पर ,
कुछ इस तरह से मुझको , तुम तोड़-ताड़ दो ना ॥
आदी हैं हम तो कूड़े-कचरे में ही बसर के ,
तुमको बुरा लगे तुम , ही पोंछ-झाड़ दो ना ॥
लग जाएँगे बुरे भी , हम खुल के काम करने ,
आती है शर्म पहले , दिन कुछ तो आड़ दो ना ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
बहुत बहुत धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !
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