मुझको जीने की मत दुआ दो
तुम ॥
हो सके दर्द की दवा दो तुम
॥
क्यों हुआ ज़ुर्म मुझसे मत
सोचो ,
जो मुक़र्रर है वो सज़ा दो
तुम ॥
मुझको हमदर्द मानते हो तो ,
अपने सर की हर इक बला दो
तुम ॥
मैं तो तुमको बुला-बुला हारा ,
कम से कम अब तो इक सदा दो
तुम ॥
यूँ न फूँको कि बस धुआँ निकले
,
ख़ाक कर दो या फिर बुझा दो
तुम ॥
रखना क़ुर्बाँ वतन पे धन दौलत
,
गर ज़रूरत हो सर कटा दो तुम
॥
वो जो इंसाँँ बनाते हैं उनको ,
कुछ तो इंसानियत सिखा दो तुम
॥
फँस गया हूँ मैं जानते हो गर ,
बच निकलने की रह बता दो तुम
॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
4 comments:
Ye rachna umda hone ke saath - saath aapka blog utna aakarshak hai , jitna ki saaj - sajja se hona chaahiye . Aap yadi saNyam se seemit kintu yojna baddh lekhan kareN to aap adhik jaane jaayeNge . Aapko shubhkaamnaayeN .
धन्यवाद ! Dr.Rakesh Srivastava जी !
Dr sahab Aapki Gazal padhkar Mir Taki Mir ke Gazalon ki yad aati hai
बहुत बहुत धन्यवाद ! shishirkumar जी !
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